यह जरूरी नहीं कि आपके पास भीड़ हों और वो भीड़ आपके अपनों की हो। इसकी पूरी संभावना है कि आप शिकार हों और आप चारों तरफ शिकारियों से घिरे हों । हितैषियों की कभी भीड़ नहीं होती । आपके असली चाहने वाले कभी भीड़ में नहीं होते । वो भीड़ से अकेले खड़े मिलेंगे । इसलिए अपने पीछे की भीड़ को कभी भी अपनी ताकत मानने की मूर्खतापूर्ण भूल ना करें । आपकी ताकत बस चंद लोग ही हो सकते हैं । ऐसे भी उचित कार्य के लिए ताकत की नहीं , नेक इरादों की जरूरत होती है । भीड़ और बल का प्रयोग सदा अनुचित कार्यों में ही होता है । महान कार्य के लिए साधना आवश्यक है जो एकांत में ही हो सकती है, भीड़ में कदापि नहीं ।
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