Sunday 26 August 2018

मिट्टी

उम्र किया ज़ाया मिट्टी क़ो महल  बनाने में

अब रोके ना रुकता पत्थर,  मिट्टी से  मिल  जाने  में

तिनका तिनका वक़्त गया अनजाने में

नींद खुली तो खुद क़ो पाया वीरने में

चला जा रहा असीम पथ पे क्या पाने क़ो

ठहरा तो फ़िर पाया खुद क़ो वीरने में 
(RD) ✍🏻✍🏻✍🏻

नया दौर

स्कूलों का वो शोर अब कुछ शांत सा है
तन्हाई में भी अब चित्त अब अशांत सा है ।

सुबह की वो लालिमा  अब धूमिल सी है
कलरवों का वो शोर अब मध्यम सा है ।

साँझ की वो बेला अब ख़त्म सी है
वो घंटियों की आवाज़ निकलती गयों के गले से अब ख़त्म सी है ।

जुगनुओ की वो अँधेरी रातों में टिमटिमाना अब अँधेर सी है
वो घुटनों की छीलन अब गायब सी है ।

वो लाल जलेबी अब रंग खोती सी है
वो पीली चाट और गुलाबी टिक्की रोती सी है ।

कंचों की वो खनखनाहट अब खोयी सी है
लट्टुओं की वो घनघनाहट अब शांत सी है ।

कित  -कित  की वो कित -कित था अब मौन सी है
बारिश में मिट्टी की सोंधी सी महक अब खोती सी है ।

कच्चे अमरूद का वो स्वाद अब फ़ीका सा है
गुड्डे गुड्डियो का वो खेल अब पुराना सा है ।

बारिश में नाव चलाने का दौड़ अब ख़त्म  सा है
कभी ना थकने का वो दौड़ अब मध्यम सा है ।

माँ के आँचल की कोर में बँधे खजाने अब लूटे से हैं
वो रँगीन होली अब बेरंग सी है वो रोशन सी दिवाली अब बेनूर सी है ।

हसरतें अब नये दौर में बदली सी है
बड़ी चाहतों में छोटी ख्वाहिशें अब गायब सी हैं ।

अब समय बदला बदला सा है रुत बदली बदली सी है
मीजाजे शहर भी अब बदला बदला सा है ।
✍(RD)

बहाव

सिमट रही है ये जिंदगी चुपके से ...
ढल रही है शाम -ए -ज़िँदगी आहिस्ते से ....
जुदा होते वो रहनुमाँ अपनों से ...
खुदा होते वो महफिल-ए -यार चुपके से .....
मैँ तो वहीँ हूँ जुदा हो रहा ये वक्त धोखे से .....
सिमट सी रही वो ख़्वाब-ए -मंजिल अलसाये से ....
लुट रहा खज़ाना -ए -बेशक़ीमती बेवज़ह से ....
मैँ तो वहीँ हूँ वक्त फ़िसल सा रहा तेज़ी से .....
तम्मना थी गले मिलने की किन -किन से , वो अब ना रहे अचानक से .....
दर्द -ए -दिल का हाल कैसे कहेँ किस -किस से वो अहसास-ए -रिश्ते  ना रहे.....
मैँ तो वहीँ हूँ कतरा -कतरा बह रहा चुपके से ....
जाने कहाँ  से वो अपनों की छाँव सिमट रहा आहिस्ते से .....
ऐ वक्त ज़रा ठहर मिलना है उनसे बेवज़ह रूठे हैं जिनसे ....
ऐ वक्त ज़रा ठहर कुछ गुफ़्तगू बाकी है उन बुज़ुर्गो से ...
ऐ वक्त ज़रा ठहर मिलना है ज़रा ख़ुद से ....
ऐ पल थोड़ा सा थम ढूँढ लेँ वो ख़ोया सा बचपन ....(RD)✍🏻✍🏻✍🏻

ज़ायका जलेबी का

वो जलेबियों की महक ,  रफ़ी के आजादी के गाने , वो 15 ऑगस्ट की तड़के की सुबह और सुबह के इंतजार में बीती शाम .......आज़ादी का मतलब पता नहीं था मग़र पूरे आज़ाद थे । सुबह तड़के उठ जाना और इस्त्री की हुई कमीज़ और हाफ़ पैंट नहाकर तुरत पहन कर पुराने जूतों को ढुंढवाने की जिद्द ज़ेहन में जिंदा है । जल्दी से राष्ट्रगान ख़त्म होने का इंतजार उन रसदार जलेबियों के ज़ायका लेने का । जलेबियों के आगे किसी भी चीज का मतलब न था । आज़ादी का मतलब पता न था मग़र आज़ाद थे । शायद वही असली आजादी थी । उन गरमा - गरम जलेबियों के रस का जायका अभी भी ताज़ा है ज़ेहन में । बंद आंखों से साफ़ दिखती वो पुरानी तस्वीर कभी धुंधली ना हुई । आज़ फ़िर आज़ादी का जश्न -ए -माहौल है और आज़ादी का मतलब बहुत पता है मग़र वो आज़ादी का लुफ़्त क्यों नहीं है ? अब जलेबियों का ज़ायका भी बदला - बदला सा है । उन भीनी - भिनी खुशबुओं का मिजाज़ भी जुदा - जुदा सा है । वो आज़ादी की खुशबू अब कहीं खोयी सी है । अब वो पुरानी जिद्द क्यों नहीं आती ?  क्यों नहीं इंतजार रहता उन बेशक़ीमती खजानों का जो माँ के आँचल के कोर से बंधी चवन्नी ख़रीद लेती थी ? 

(राजू दत्ता)✍✍✍

बरसात

आज़ फ़िर बरसात आयी है .

आयी है मग़र चुपके से
ना कोई संदेशा ,  ना कोई ख़बर .
पहले भी तो आती थी मग़र अंदेशा होता था .

वो टप टपाहट की धुन पर नाचती बूँदों का उत्सव क्यों बंद है

वो सुर्ख़ मिट्टी से बूँदों का मिलना और उस मिलन की सौंधी खुशबू कहाँ गुम हुई .

वो कागज़ की कश्तियों का लंगर कौन लूट ले गया .

 वो झँझावात , वो हवाओं की सनसनाहट किधर है .

बारिश में भींगते नहाते वो मंज़र क्यूँ नहीँ दिखते.
टिन की छत पर थिरकते बूँदों का वो सँगीत अब शाँत क्यूँ  है .

घर की दीवारों को गीला कर देने वाला वो लगातार रिसने वाला मौसम क्यूँ नहीँ आता .

बूढ़ा बरगद का वो पेड़ क्यूँ वीराँ पड़ा है . कहाँ गया उनपर कलरव करते पंछियों का वो रेला .

कहाँ गया उन बच्चोँ का मेला जो उनकी छाँव में हर रोज़ लगता .

उन बादलोँ के गरजने से पहले अपनी कानों पे सबसे पहले  ऊँगलियोँ रखने का वो खेल भी क्यूँ बंद पड़ा है .

वो अपनी ही धुन में टर्राते मेंढक अब कहाँ चले गये .

कहाँ गये वो टोटके जिनसे बारिश रोकी जाती थी .

मुहल्लों में घुटनों भर लगने वाला वो पानी जिसपर हमने  छप -छपाहट का खेल खेला ,

 कहाँ गुम हुआ वो .दिन को भी वो रात का मंज़र अब दिखता नहीँ . नहीँ दिखता बारिश का वो उत्सव .

अब तो सीधे बाढ़ आती है , बूँदों का वो दौर अब गुज़र चला है अब वो सारी धुन ,
वो भीनी महक और जज़्बात बंद कमरे की दीवारों में कैद है .

अब ये नया दौर आया है . (RD)✍✍✍

ट्रेन टू कोटा

ट्रेन टू कोटा :

बारहवां का परीछा भी हो गया है . दशमां फर्स्ट डिविजन किए थे सो साइन्स लेकर फर्स्ट डिविजन क़ो पूरा इज्ज़त बख्शे दिए थे . सब परीछा जबरदस्त गया था . अंग्रेजी का पेपर भी ठीके गया था . दू -तीन महीना रिज़ल्ट आते आते लग जाएगा . पिताजी कहे हैं कि रैपिडेस्क इंगलिश का क़िताब लेकर प्रेक्टीस करो और स्पोकेन इंग्लीश का किलास शुरू कर दो . अंगरेजी नहीं आवेगा तो कौनो नहीं पूछेगा . साइन्स हिंदी में पढ़ना औरो आर्ट्स लेना एक्के है . सब गुर गोबर हो जाएगा .अंगरेजी पर जोर जादा है . पिताजी कहते हैं फ़लाना का लइकन धरा -धर अंगरेजी बोलता है . बारहवां कौनो तरह अँगरेजी में  पढ़ लिए मगर कॉन्फिडेन्स ठीक से नहीं हुआ . इधर पटना में अन्गेरेजी भी हिंदी में पढ़ाता है .इसीलिए अँगरेजी मन के अंदरे रह गया है और बाहर निकलते समय मन हदियाने लगता है . गोर कांपने लगता है . इधर बार बार अंगरेजी टोन पर बिहारी तड़का ना चाहने पर भी लग ही जाता है . पता चला फोनेटिक ही खराब है . सो ब्रिटिश लिंगवा जॉइन कर लिए हैं. पिताजी का जोर है की हम हू कोटा चले जाएँ काहे कि पटना का माहौल अब उनको ठीक नहीं लग रहा और उपर से पानी ख़राब है . दू साल में अंगरेजी भी ठीक से नहीं बोल पाने का दर्द पिताजी की बातों में बार बार दिखता है और फ़िर कोटा में फुल इंग्लीश में पढ़ाई होता है . इधर दू साल में तीन बार जॉनडिस हो गया था और शरीर का नक्शा भी खराब होले था , जिंदगी का रूप रंग बदल गिया था . पिरूकिया कम और चंदरकला जादा खाने लगे थे . लिट्टी चोखा का तड़का अब बिना सुट्टा के सुहाता नहीं था . तीन महीना ख़तम हुआ और बारहवाँ का रिज़ल्ट आया और एक बार फ़िर मम्मी का टोटका और हमरा किसमत हमको फ़िर से फर्स्ट डिविजन करवाया . पिछली बार के जैसा इस बार भी नॉलेज कम औरो नंबर जादा आया . अभी तक ई समझ नहीं आया कि ग्यारहवां और बारहवाँ का पढ़ाई और आईआईटी का पढ़ाई अलग अलग काहे है . असली खेल तो अब शुरू होने वाला है . घर में सब बहुत खुश है . फर्स्ट करना मतलब घरवाला का गर्दन उपर करना ही तो है भले भी अपना गरदन लटक जाए . खैर अब पटना का लिट्टी चोखा , चंदरकला औरो बेसन का लड्डू से बिदा लेने का टैम आ गया है . सब दोस्त लोगन समान पैक करने आए हैं . रात क़ो सबका रुकने का प्रोग्राम हुआ है . कोटा का मॉल औरो कोचिंग का चर्चा रातभर चलता रहा . रातभर खैनी , सुट्टा और चाय चलता रहा . मकान मलिक क़ो एक बार पता चल गया था कि दारू चला था सो हाथ पैर जोर कर माफ़ी मांगे थे कि आगे से नहीं होगा .उसका अहसान अभी तक पैर छूकर चुकाते आ रहे हैं . बीयर दारू नहीं होता यह ज्ञान हमको हो गया था मगर मकान मालिक क़ो इसका ज्ञान नहीं था . खैर रात ख़तम और भोरे भोर मकान मालिक का पैर छूकर ऑटो लेकर स्टेशन क़ो निकल पड़े . हनुमान मंदिर में गोर लगे और मम्मी का गाछा बेसन का सवा किलो लड्डू चढ़ाए . मुस्सलम्पुर हाट , बाज़ार समिति , फ़िज़िक्स , कैमिस्ट्री , मैथ्स सब छूटले  जा रहा था . ट्रेन राजिंदर नगर टर्मिनल से गुज़रते जा रही थी और धीरे धीरे धुंधला होते जा रहा था . इधर मम्मी पिरूकिया और ठेकुआ बना रही है . इधर छोटका बार बार पटना के बारे में पूछ रहा था . इधर वकील चाचा अंगरेजी में पूछ रहे थे -"What is your ambition in life ? " .  गांव के दोस्त लोग बार बार मिलने आ रहा है . भोलूआ जो कभी खेलाता नहीं था अब बार बार बुलाता है . एक सप्ता बीत गया और कोटा का वेटिंग टिकट अब कन्फर्म हो गया है . अबकी बार गांव का कम औरो मुस्सलम पुर हाट ,  राजिंदर नगर और बाजार समिति का याद जोर मार रहा है . मम्मी फ़िर पिछल्के बार जैसन रोले जा रही थी और बार बार अचरा से लोर पोछे जा रही थी . सामानों सब पैक हो गया था . हमरो मन रोए जा रहा था . मम्मी बार बार केतारी का रस पीने का किरिया दिए जा रही थी . बार बार बोले जा रही थी इस बार जौण्डिस मत करना ,  बेसी बाहर का नहीं खाना ,  रात क़ो बेसी देर जगना मत , भोरे सत्तू पीना , मैगी टैगी मत खाना . पिछली बार के जैसा '  हूँ हूँ '  ' ठीक है '  करले जा रहे हैं . अबकी जाने का कौनो खुशी नहीं हो रहा मन में . ट्रेन का टैम हो गया है . सबको गोर लग लिए . पहले गोसाई क़ो गोर लगना नहीं भूले . मम्मी फ़िर अंचरा से हजरका नोट निकलकर चुपके से रख दी है . कही है पनसैया का जींस लेना औरो बाकी केतारी का रस पीते रहना . मम्मी टीसन  तक बीच बीच में रोते रही . पिताजी बार बार समझा रहे हैं जादा मॉल उल मत जाना ,  संगी साथी के चक्कर में बेसी मत परना , फिलिम तीलीम जादा मत देखना ,  एक बार आईआईटी निकाल लो फ़िर जो मर्जी करना . ट्रेन खुल रही है . अबकी पहला वाला मज़ा नहीं आ रहा था . मन हदस रहा था . बस बहे जा रहे थे . असली कांड अब होने जा रहा था . (RD)✍🏻✍🏻✍🏻

मैट्रिक का पाठा

मैट्रिक का पाठा -

नम्मा का परीक्षा ख़त्म हो गया . मैथ में तो नम्बर ठीक ठाक आ जायेगा . सँस्कृत में डर है . समाज़ और विज्ञान में पास हो जायेँगे . हिँदी का पढ़ाया हुआ सब फँस गया है . सँस्कृत वाला सरजी के घर पैरवी को गये तो कुटिया गये . मने मन सवा टका का प्रसाद काली मैया को गछ लिये .  बाबा पूछा तो बता दिये पास हो जायेँगे . मा को चिँता थी कि कभी पढ़ते नहीँ देखा तो परीछा कैसे ठीक गया होगा . बहिन सब लोग को पता था कि पक्का फेल होँगे . मा ने काली मा को पाठा गछ लिया था . एक दिन सोनूआ भोरके भोरके आया और सबको चिल्ला चिल्ला के बताया कि सब फेल है . पप्पा का पारा गरम हुआ और बसीये मुँह पीठ फोड़ दिये . हम भी बहुत रोये . एक घँटा बाद पता चला कि हम पास थे . सँस्कृत में ग्रेस मार्क मिला था . सोनूआ फेल था . अबकी हमरी बारी थी . बहुत नखरा किये थे हम . स्कूल का  बुढ़वा हेडमास्टर उन सबको बुलाया जो जो नम्मा पास हुआ था . हम दसवाँ में चल गये थे . सुनील भैय्या से मिले जो तीन बार मैट्रिक फेल किये थे . पता करने गये की कैसे मैट्रिक का तैयारी करे . सुनील भैया पहले तो बहुत भाव खाये फ़िर हमसे शरीर पे चढ़वा कर जतवाया. बोला एक बार में मैट्रिक तुमसे ना होगा . गैस पेपर ले लो और पूरा रट्टा मारना होगा . लास्ट में एटॉम बोम्ब ले लेना .पहला बार ट्राइ मार लेना . एक्सपीरियेन्स हो जायेगा तब दुसरका बार कुछ होगा . मैट्रिक पास करना कौनो खेल नहीँ ,  पीठ का हड्डी टेढ़ा करना होता है .  यह सब सुनकर मन हदिया गया . रात को पप्पा को बोला कि गैस पेपर भारती भवन का ला देने . पप्पा बोला कि सुनीलवा के पास पुरनका गैस पेपर है उसको बोल देँगे तुमको पढ़ने के लिये दे देगा . स्कूल का मंडल मास्टरजी क्लास में पैर दबवाते और घर पर टूसन पढ़ाते .सो हमऊं टूसन पढ़ने का जिद्द मचाये. इतना तो कमाई था नहीँ सो मैथ का कुँजीका ख़रीद लिये और रट्टा लगाने लगे . उधर सुनील भैया का फटलका गैस पेपर पर नयका ज़िल्द चढ़ा कर तैयारी चालू . मुहल्ले का सब मैट्रिक फ़ेल भैया लोग बताते रहे कि एक बार मैट्रिक पास तब लाइफ सेट . यादव मास्टर का बेटवा को कभी पढ़ते नहीँ देखा . उसके पास सब नैका कितबवा भारती भवन औरो  स्टूडेंट फ्रेंड्स  सब था . फर्स्ट करता था . उ कहता था कि इस बार उसका मौसा कोस्चन सेट करेगा . मग़र पैसा देना होगा . हमहूँ ठान लिये कि रटिया के पास कर लेंगे . टेस्ट परीछा हुआ और सब पास किया . मैट्रिक का पिशाच आगे खड़ा था . तीन महीना का टाइम था सो जोर शोर से भिड़ गये . पिछला पाँच साल का कोश्चन बना लिये .रट्टा मारने से कुछो तो धीरे धीरे समझ आ रहा था . इस बार सरसती मा का पूजा में उपास रखा और मने मन गच्छा कि हर साल उपास करेँगे बस एक बार मैट्रिक पास हो जाये . उधर घर में फ़िर पाठा गच्छ लिया . इस मैट्रिक ने एक पाठा पहले ही पचा रखा था और अब एक औरो . परीछा में एक्के सप्ता रह गया और इधर एक बात पता चला कि यादव मास्टर का बेटवा का मौसा इस बार कोश्चन सेट नहीँ किया . मन हल्का हुआ कि अब उका भी पढ़ना होगा. परीछा से एक दिन पहले दू लोग को पानी चढ़ा उनमे एक मास्टर का बेटवा भी था . भोरे काली मैया का मंदिर जाकर परीछा देने गये . परीछा खतम हुआ और लगा कि पास कर लेंगे . सुनील भैया बोला कि परीछा तो सबका ठीक जाता है रीजल्ते खराब होता है . बिना पैरवी के पास कोई नहीँ होता . हमरे पास पैरवी का पैसा नहीँ था सो भगवन भरोसे रह गये . रिज़ल्ट आने का खबर पेपर में आने वाला था सो रोज रोज भोरके टीसन पहुँच कर दानापुर कैपिटल और नॉर्थ एस्ट का बात जोहते रहते जिसमे पेपर आता . तंगिया कर एक दिन छोड़ दिये और उसी दिन रिज़ल्ट आया और मन्नत कुबूल हुई . मैट्रिक पास हुए और फर्स्ट डिवीजन किये . सुनील भैया का लक्की गैस पेपर काम आया . एक पाठा और शहीद हुआ .(RD) ✍🏻✍🏻✍🏻

बस टू पटना

Bus to Patna🚍

दसमा का रिजल्ट आया है. फर्स्ट डिविजन आए हैं हम. पटना जाने का तैयारी चल रहा है हमारा. आगे साइंस लिए हैं ना. साइंस वाला सब के लिए पटना मक्का-मदीना है. वहां जाना ज़रूरी होता है. बिना वहां गए मोक्ष नहीं मिलता है. त अभी पटने जा रहे हैं, बारहमा के बाद कोटा चाहे कहीं और जाएंगे. मम्मी सुबहे से पेड़ूकिया छानने में लगी है, बीच-बीच में अंचरा से नोर भी पोछ लेती है. छोटका भाई-बहिन सब सामान ठीक कर रहा है. पिताजी पैसा के जोगाड़ में कहीं गए हैं. पता नहीं कब आएँगे, कहीं बसो ना छूट जाए.

हमारे कलास में बहुते लड़का साइंसे लिया है. ता हमहू ऊहे ले लिए हैं. हमारे दिल्ली वाले मामाजी का बेटा भी बताया कि आजकल साइंस में ज्यादा एस्कोप है. फर्स्ट डिविजन आने के बाद पिताजी भी जोर देले हैं कि साइंसे लो. कॉमर्स-ऊमर्स लेके क्या करोगे! बिगड़ल बेटी बने नर्स आ बिगड़ल बेटा पढ़े कॉमर्स.. दसमा में फर्स्ट डिविजन लाके आर्ट्स का तो सोचबो नहीं कीजिए. गाऊं-जबार के लोग हंस के मार देगा. बेटी के घर से भाग जाने आ बेटा के आर्ट्स लेने, दुन्नू में पिताजी का बराबरे नाक कटता है.

अरे पिताजी अभी तक नहीं आए. सब सामानो पैक हो गया है. मम्मी रो रही है तो हमरो रोए का मन कर रहा है. लेकिन भीतरे-भीतर खुश हैं कि अब हमहू पटना रहेंगे. सुबहे से सब हमको खूब समझा रहा है. बेशी घूमना नहीं, मन लगाकर पढ़ना, डेली फिलिम देखने नहीं जाना, किसी से झगड़ा-झाटी नहीं करना. हम हर बात पर "हूँ-हूँ, ठीक है" कर रहे हैं. उधर छोटका भाई अलगे पैर पटक के चिचिया रहा है कि हमहू भईया के साथ पटना जाएंगे. पन्द्रह मिनट में बस चौक पर आ जाएगा.

अब सबको गोर लागना शुरू कर दिए. सबसे पहले गोसाईं को गोर लागे हैं, फिर मम्मी को. मम्मी अंचरा के खूँटी में से पनसहिया का नोट निकालकर दी है. रख लो, तुमको जूत्ता नहीं है ना, वहाँ खरीद लेना. पिताजी भी धड़फड़ाएले आ रहे हैं. चलो-चलो, जल्दी चलो. बस चौक पर खड़ा है. हम घर से विदा हो गए पटना के लिए. सब चौक तक छोड़ने आया आ मम्मी देहरी पर खड़ा होकर रो रही थी. हमारा बाल काण्ड ख़तम हो रहा है. अब ज़िन्दगी का लंका कांड शुरू होने वाला है. फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथ, बाजार समिति, मकान मालिक, रूम भाड़ा, मुसल्लहपुर हाट, आईआईटी-जेईई, फाउंडेशन-टारगेट सब मिलकर हमारा खटिया खड़ा करने वाला है. बस के खिड़की से गाँव का सबसे पुरनका भोला बाबा का मंदिर भी दिखना अब बंद हो गया है..!! ✍🏻✍🏻✍🏻