मध्य रात्रि की बेला में
जाने कौन बुला रहा था
दस्तक भी कुछ ऐसी थी
रोम रोम को जगा रहा था
पूछा मैंने कौन हो तुम
निशब्द वह मुस्कुरा रहा था
मध्य रात्रि की बेला में
जाने कौन बुला रहा था
बेचैनी थी सांसों में
फिर पूछा कौन हो तुम
धुंधली सी काया थी उसकी
कुछ अपना सा भा रहा था
मध्य रात्रि की बेला में
जाने कौन बुला रहा था
पास गया तब जाकर पाया
अंतर्मन ही बुला रहा था
पूछा उसने कैसे भूल गए मुझको
ऐसा भी क्या आखिर भा रहा था
मध्य रात्रि की बेला में
जाने कौन बुला रहा था
सालों से भूले थे मुझको
आखिर क्या क्या हो रहा था
याद कभी न अाई मेरी
ऐसा भी क्या सो रहा था
मध्य रात्रि की बेला में
जाने कौन बुला रहा था
याद करो वो भोर बेला
क्या सानिध्य रस सा बह रहा था
बिन मेरे संग
कुछ तुमसे न हो रहा था
मध्य रात्रि की बेला में
जाने कौन बुला रहा था
मैं जो कहता झट से होता
आखिर कैसा नशा रहा था
तुम भी उन्मुक्त थे मैं भी ख़ुश था
जीवन अविरल सा बह रहा था
मध्य रात्रि की बेला में
जाने कौन बुला रहा था
दिन चढ़ा फिर निकले तुम
छोड़ के मेरा दामन तुम
बल पड़ा था पेशानी पर
ऐसी भी क्या अभिलाषा रहा था
मध्य रात्रि की बेला में
जाने कौन बुला रहा था
पीछे पीछे निकला था मैं भी
क्या आवाज ना आयी मेरी
सुनकर भी किया अनसुनी
जाने किस मद में तू जी रहा था
मध्य रात्रि की बेला में
जाने कौन बुला रहा था
कर सब याद हुआ शर्मिंदा
नज़रे भी ना मिला रहा था
जीवन की इस आपाधापी में
खुद को ही तो भुला रहा था
मध्य रात्रि की बेला में
जाने कौन बुला रहा था
गला घोंट कर खुद का ही
जाने कैसे जी रहा था
खोकर वो अनमोल सितारे
माटी पत्थर बीन रहा था
मध्य रात्रि की बेला में
जाने कौन बुला रहा था
बचा शेष जीवन कुछ पल
इसलिए आया तू इस पल
चल वापस ले चल
भोर सवेरा हो रहा है
मध्य रात्रि की बेला में
जाने कौन बुला रहा था
(राजू दत्ता) 🌞🌞🌞