Saturday 27 February 2021

जगह

जगह
__________________________________________
हम किस चीज को कितनी अहमियत देते हैं यह इस बात से जाहिर हो जाता है कि उसे हमने कौन सा स्थान दिया है । मसलन आज जूते और सैंडल जगमगाते शोरूम में सजे मिलते हैं । बड़े ही सहेजकर रखे जाते हैं । उसकी चमक फीकी न पड़ जाए इसका मुकम्मल हिसाब रखा जाता है । बहुत अच्छी बात है कि हम चीजों को संभाल कर करीने से रखते हुए उसका सम्मान करते हैं । आजकल ब्रांड का सम्मान आदमी से ज्यादा हो चुका है । ब्रांडेड पहनावे से आदमी का कद नाप लिया जाता है । आदमी के अंदर कौन सा ब्रांड है , इसका न तो कोई आकलन करता है और न ही इसकी फुरसत है लोगों को । बस आप ब्रांडेड लबादों से सजे हों और चाल - ढाल ब्रांडेड जैसे हो तो आपका आकलन आसानी से बिना प्रयास के ही हो जाता है । अब चीजें बोला करती हैं और आदमी चुप है । ख़ैर , जिंदगी के मायने और दिलों के अफसाने समय के साथ बदलते हैं और आगे भी बदलते रहेंगे । कभी - कभी बदलाव का चक्र हमें व्यथित करता है मगर इस व्यथा का कोई इलाज़ नहीं होता । हम बात जूतों की ही कर लें । जूतों का सम्मान अब बहुत बढ़ चुका है  । शोरूम से निकलकर जूते अब बेडरूम तक अपनी चमक लिए सजे मिलते हैं । ब्रांड कहीं भी , कभी भी बेरोक टोक आ जा सकता है । पहले जूतों को इतना सम्मान नहीं मिलता था । उसकी जगह आंगन की डेहरी तक ही हुआ करता था । समय के साथ जूतों ने आदमी के दिमाग पर फतह पा ली और आज खुद आजाद है । अब जूते मायने रखा करते हैं । दूसरी तरफ आजकल किताबें सड़कों पर बिछी दिख जाना आम सी बात हो गई है । किताबों ने अपनी पकड़ खो दी है । किताबें ने समय के साथ संघर्ष में हार सी मान ली है । लोगों ने किताबों की जगह बदल डाली है । हां , यह सही है कि आज भी किताबें भी अपनी चमक - धमक लिए शोरूम से लेकर बेडरूम तक जगह बनाए हुए है मगर काफी संघर्ष करते हुए । ऐसे लोगों की संख्या अब कम सी होती जा रही है । कुछ किताबें होनी चाहिए मगर बस दिखाने के लिए । बुकसेल्फ अब सजावट का साज सा बनता जा रहा । सड़कों पर बिछे किताबों और शोरूम में टंगे जूतों को देखकर अजीब से कश्मकश में पड़ जाते हैं मगर सच तो यही है । धार्मिक ग्रंथ से लेकर अमर साहित्य सब के सब सड़कों पर बिछे बिकते मिल जाया करते अब । हमने चीजों की जगह बदल दी हैं अपनी जरूरतों के हिसाब से । ये बदलाव अब नया बदलाब लाने की दिशा में अग्रसर है । अब किताबों में जिल्द लगाने का जमाना चला गया है और मोबाईल स्क्रीन पर स्क्रीन गार्ड लगाने का जमाना है । अब जूतों को चमकाया जाता है और किताबों की फीकी पड़ती चमक को नजरंदाज किया जाता है । अब किताबें पढ़ी कम और पॉडकास्ट पर सुनी ज्यादा जाने लगीं हैं । किताबें अपनी जगह बदल रही है और आदमी भी और ये कहना ज्यादा सही होगा कि आदमी अपनी जगह बदल रहा है और इसलिए चीजें भी जगह बदल रही हैं । जरा सोचिए हम किसे और कौन सी जगह देते हैं और सही चीजों की जगह ही हमें सही दशा और दिशा दे सकती है । समय अब भी शेष है । जगह बदलिए ।
__________________________________________
(राजू दत्ता✍🏻 )