Sunday 14 April 2019

सतुआ परब

आज 'सत्तुआनी' है ! इस् पर्व को पंजाब में 'वैशाखी' भी कहते हैं - वैशाख महीने का पर्व ! गाँव में होते थे - एक दिन पहले ही 'घोन्सार' से तरह तरह का 'सत्तू' भूंजा और पीस कर आता था - चना का सत्तू , जौ का , मकई का ...मालूम नहीं कितने तरह का ...फिर "आम के टिकोला" का चटनी ! 'भंसा घर' ( किचेन ) के दुआरी ( दरवाजा ) पर् बडका पीढा ( लकड़ी का बैठने वाला ) पर् बाबा नहा धो कर बैठ जाते थे - सफ़ेद चक चक खादी वाला धोती ..वहीँ उनके सामने छोटे वाले पीढा पर् हम भी बैठ जाते ..फिर परदादी एक बड़े थाली में तरह तरह का सत्तू परोसती थीं ...और तब तक 'आम के टिकोला' को पुदीना के साथ मिला कर बड़े वाले सिलवट पर् 'चटनी' पिसा रहा होता ...जल्दी लाओ ..'चटनी' :))
जब तक बाबा और हम खाते रहते ..परदादी उतने देर तक पंखा लेकर बैठी होंती थी ...उधर किसी को आने का इज़ाज़त नहीं होता !
एक सुबह से ' पीतमपुरा ' में "टिकोला" खोज रहा हूँ ..नहीं मिला ✍🏻