Sunday, 5 July 2020
ख़ून पसीना
*एक गरीब दोस्त भी फटका चप्पल में पेपर बेचकर तुमको पढ़ाया - लिखाया डाक्टर बनाया । यहां तक कि तुमको - आप आप बोलकर इज्ज़त देता रहा और तुम उसका बोटी - बोटी नोच नोच के खाया । सूख - सूख के चूसा हुआ केतारी जैसन हो गया उ । सब रस पी गिया तुम । उ रोज रोता है छिप - छिप के । उसका क्या ? घर का गरीब तुमको नै दिख रहा है ? उ अभी भी अपना बचा खुचा ख़ून बहाने का तैयार है तुमरे लिया । किडनी , लीवर , आंख शरीर का सब्बे चीज से दोस्ती निभाया उ । खाली पैर बिना चप्पल के तुम रा खातिर सब सावन में बाबा धाम गया । इतना कबूलती किया कि आज तक पूरा नै कर पाया । भगवान सब भी गुस्सैल है । तुमको नै पता कितना ख़ून पसीना से तुमको पाला पोसा और पढ़ाया औरो तुम साला अभी भी विद्यार्थी जीवन का चद्दर ओढ़ कर टाटा गोल्ड का चायपत्ती और फूल क्रीम वाला दूध वाला चाय और आमलेट चबाता रहा । आज तक उ लड़का टाटा गोल्ड वाला चाय पीना तो दूर सूंघा तक नहीं है । नंगा पैर पेपर लेकर दौड़ दौड़ के जो कमाया तुमको भेजा और तुम नायकी का जुत्ता पहिन के घूमा है । उसका खून पसीना वाला पैसा तुम लौंडियाबाजी में भी लुटाया । हमको बोलने दो आज । बहूते लिहाज़ किए हम अब उ लड़का का दरद नै देखा जा रहा । तुमको उ कुछ नै कहेगा । तुमरे लिए देशी घी का ठेकुआ नीमकी बनाते बनाते अपना हड्डी गला दिया । अपने धी नै खाया कभी तुमको खिलाया । छाती फटता है हमारा । उ तुमको कभी नै बोलेगा , कभी नै ।*
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