सजीव का आनंद
हमारी जिंदगी बहुत छोटी है दोस्तों. हमारे मिलने का कारण होता है , कोई न कोई अबूझ रिश्ता होता है. यह संयोग मात्र नहीं होता है. प्रकृति हमें मिलाती है. जिंदगी की आपा धापी में हम उन्हें भूल जाते हैं. यह दुखद है. जब यादें दस्तक देती हैं तो हम अपने मन के द्वार तुरंत बंद कर देते हैं. कारण अज्ञात है. एक भय है कि कष्ट होगा उन यादों में जाकर. हम सदा अपने वर्तमान कॊ कल से जोड़कर दुखी होते हैं. बीता हुआ कल सदा सुखद प्रतीत होता है. परन्तु , सत्य तो यॆ है कि वो आनँद आज़ भी वर्तमान है. आनँद का मार्ग स्वयं बंद कर रखा है. हमने अपने अंदर उठने वाले आनँद कॊ दबाए रखा है. ऐसा क्या था कि बचपन में बिना किसी सुख साधन , वैभव और धन के मस्त रहते थे और आज़ सबकुछ है ,मगर वो चंचलता , वो उत्साह , वो उमंग , वह ओज , वह तेज , वो आनँद नहीं है. बात विचार करने योग्य है.🙇विचार की आवश्यता है. कहीँ न कहीँ हमारे आकलन में भूल है. हमने बड़े होने का आवरण ओढ़ लिया है. आपने कोमल मन कॊ धीरे धीरे कठोर आवरण से ढँक लिया है. हम अक्सर याद करते हैं कि जब छोटे थे तो दोस्तों के साथ दिनभर मस्ती किया करते थे. गुल्ली डंडे के खेल से लेकर बगीचे से आम चुराना , नदियों में देर तक नहाना , न जाने क्या क्या. सबकुछ आज़ भी यथावत है , वो आनँद भी यथावत है. हमने स्वयं कॊ इससे दूर रखा हुआ है. खेल कॊ देखकर और सोच कर अनुभव करना और खेल में हिस्सा लेने के अनुभव में कोई तुलना नहीं. किसने रोका है हमें उन पलों कॊ पुन: जीने से ? हमने स्वयं कॊ रोक रखा है. किसने रोका है अपने पुराने दोस्तों कॊ वैसे ही गले लगाने कॊ और कंधे पे उसी तरहा हाथ रखकर चलने कॊ ? किसने रोक रखा है दोस्तों के साथ पतंगबाजी कॊ ? किसने रोका है पानी में पत्थर फेंककर छल्लिया बनाने कॊ ? इन प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं है. हमने स्वयं अपनी असीमित चेतना कॊ संकुचित कर लिया है. हमने स्वयं अपना मार्ग बदल दिया है. कसूर किसका है ? जवाब अनगिनत होंगे , मगर खोखले होंगे. यही सत्य है. "हमारे पास समय नहीं है ", "अब हम बड़े हो गये हैं ", जिम्मेदारियां बढ़ गयी हैं " न जाने कितने जवाब हम बनाते हैं. ये सारे जवाब खुद कॊ फुसलाने के लिये है. हमने स्वयं से झूठ बोलना सीख लिया है. कारण ? कारण अज्ञात है. हम स्वयं का सामना करने से डरते हैं. हमारी उत्कंथ इच्छाशक्ति कमजोर हो चुकी है क्योंकि हमने इसका पोषण करना छोड़ दिया है. आज़ हम बारिश में भींगने से बचते हैं. क्या खुद कॊ भींगने से बचाने के लिये ? नहीं. अपने जूते , अपना बटुआ और अपना मोबाइल बचाने के लिये. सोचने वाली बात है 🙇🏻छोटी बात नहीं. जीवन का सारा सार छिपा है इसमे. इच्छा होती है बारिश का आनंद लेने की मगर कुछ रोकता है. निर्जीव सजीव कॊ रोक रहा है. आश्चर्य है. निर्जीव चीज़े सजीव कॊ नियंत्रित कर रहीं हैं.अगर हम गौर करें तो आज़ हम आनंदित सिर्फ़ इसलिये नहीं हो पाते क्योंकि हमारा नियंत्रण निर्जीव पदार्थ कर रहा है. निर्जीव कॊ क्या पता ? कसूर सजीव का है. सत्य तो यह है कि हम स्वयं दुहरा चरित्र रखते हैं-एक सजीव का जो आनँद चाहता है और दूसरा निर्जीव का जो हमें नैसर्गिक आनँद से रोकता है. हम पोषण भी निर्जीव का करते हैं इसलिये निर्जीव सजीव पर विजित होता है. सजीव का पोषण करो दोस्तों , आत्मा की पुकार सुनो , आनँद कॊ चुनो , अपनी आत्मा का विस्तार करो , प्रकृति से जुड़ो , अपने बचपन कॊ पुनर्जीवित करो. समय सीमित है.-सजीव महत्वपूर्ण है, निर्जीव तो निर्जीव है........
जीवन में दोस्ती है और बेफिक्र बचपना है तो ही जीने का मज़ा है। बहुत सुंदर बात कही है आपने
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