नेत्र मात्र का खुलना ही दिख जाना नहीं
अंतर्मन के चक्षु ही सत्य बतलाते हैं ।
अधरों का हंसना मात्र ही आनंद नहीं
अंतर्मन की गहराई ही सत्य बतलाते हैं ।
मिले जो हाथ मात्र वो साथ नहीं
अंतर्मन का मिलना ही सत्य बतलाते हैं ।
देकर अन्न मात्र ही मिटाना भूख नहीं
अंतर्मन की करुणा ही सत्य बतलाते हैं ।
मंदिर मस्जिद जाना मात्र ही भक्ति नहीं
अंतर्मन की शुद्धि ही सत्य बतलाते हैं ।
नेत्र मात्र का खुलना ही दिख जाना नहीं
अंतर्मन के चक्षु ही सत्य बतलाते हैं ।
(राजू दत्ता) ✍🏻
बहुत ही सुन्दर कविता है
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