सिमट रही है ये जिंदगी चुपके से ...
ढल रही है शाम -ए -ज़िँदगी आहिस्ते से ....
जुदा होते वो रहनुमाँ अपनों से ...
खुदा होते वो महफिल-ए -यार चुपके से .....
मैँ तो वहीँ हूँ जुदा हो रहा ये वक्त धोखे से .....
सिमट सी रही वो ख़्वाब-ए -मंजिल अलसाये से ....
लुट रहा खज़ाना -ए -बेशक़ीमती बेवज़ह से ....
मैँ तो वहीँ हूँ वक्त फ़िसल सा रहा तेज़ी से .....
तम्मना थी गले मिलने की किन -किन से , वो अब ना रहे अचानक से .....
दर्द -ए -दिल का हाल कैसे कहेँ किस -किस से वो अहसास-ए -रिश्ते ना रहे.....
मैँ तो वहीँ हूँ कतरा -कतरा बह रहा चुपके से ....
जाने कहाँ से वो अपनों की छाँव सिमट रहा आहिस्ते से .....
ऐ वक्त ज़रा ठहर मिलना है उनसे बेवज़ह रूठे हैं जिनसे ....
ऐ वक्त ज़रा ठहर कुछ गुफ़्तगू बाकी है उन बुज़ुर्गो से ...
ऐ वक्त ज़रा ठहर मिलना है ज़रा ख़ुद से ....
ऐ पल थोड़ा सा थम ढूँढ लेँ वो ख़ोया सा बचपन ....(RD)✍🏻✍🏻✍🏻
ढल रही है शाम -ए -ज़िँदगी आहिस्ते से ....
जुदा होते वो रहनुमाँ अपनों से ...
खुदा होते वो महफिल-ए -यार चुपके से .....
मैँ तो वहीँ हूँ जुदा हो रहा ये वक्त धोखे से .....
सिमट सी रही वो ख़्वाब-ए -मंजिल अलसाये से ....
लुट रहा खज़ाना -ए -बेशक़ीमती बेवज़ह से ....
मैँ तो वहीँ हूँ वक्त फ़िसल सा रहा तेज़ी से .....
तम्मना थी गले मिलने की किन -किन से , वो अब ना रहे अचानक से .....
दर्द -ए -दिल का हाल कैसे कहेँ किस -किस से वो अहसास-ए -रिश्ते ना रहे.....
मैँ तो वहीँ हूँ कतरा -कतरा बह रहा चुपके से ....
जाने कहाँ से वो अपनों की छाँव सिमट रहा आहिस्ते से .....
ऐ वक्त ज़रा ठहर मिलना है उनसे बेवज़ह रूठे हैं जिनसे ....
ऐ वक्त ज़रा ठहर कुछ गुफ़्तगू बाकी है उन बुज़ुर्गो से ...
ऐ वक्त ज़रा ठहर मिलना है ज़रा ख़ुद से ....
ऐ पल थोड़ा सा थम ढूँढ लेँ वो ख़ोया सा बचपन ....(RD)✍🏻✍🏻✍🏻
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