Tuesday 25 August 2020

स्टेशन पहुँचने से पहले ट्रेन खुल चुकी थी

*स्टेशन पहुँचने से पहले ट्रेन खुल चुकी थी*

_________________________

*बचपन में हमसे पढ़े - लिखे बड़े लोग अक्सर  इंग्लिश ट्रांसलेशन पूछ लिया जाया करते  थे और एक तो मानो जैसे हमारी नियति में ही लिखी थी - "मेरे स्टेशन पहुँचने से पहले ट्रेन खुल चुकी थी " बड़ी दुविधा थी उन दिनों । अब सचमुच ट्रेन जा चुकी है । अब ट्रांसलेशन पूछने वालों में से अधिकांश समय से पहले ही स्टेशन पहुंचकर ट्रेन पकड़कर अनंत यात्रा को जा चुके हैं । कुछ लोग तो स्पेलिंग पूछने को ही अपना कर्तव्य जान सबसे कोई न कोई स्पेलिंग पूछ लिया करते थे । स्पेलिंग पूछे जाने और न बता पाने की लाज अब खो चुकी है । एक छोटी सी भार्गव की डिक्शनरी घर - घर अपनी मौजूदगी से यह बता दिया करती कि यहां भी लोग अंगरेजी के कदरदान हैं और अब वो डिक्शनरी भी ट्रेन पकड़ समय से पहले जाने कहां जाकर खो गई है । डिक्शनरी तक को याद करके अंगरेजी को धूल चटा देने का सामर्थ्य हम बिहारियों को खूब अच्छी तरह आता था । अब सबकुछ गुगलमय हो चुका है , अबकुछ ऑटो - करेक्ट हो जाता है । अब कोई पूछने वाला नहीं और बताने वाला भी नहीं । अंगरेजी बोलने का हुनर रेपिडेक्स इंग्लिश वाली किताब सिखा दिया करती थी और बस किताब भर होने से आदमी जान जाता कि यह आदमी अंगरेजी बोल लेता है । रेपिडेक्स इंग्लिश की किताब ने न जाने कितने ही घरों को शोभा बढ़ाकर हमारे आन - बान और शान को अपने मोटे कवर से ढककर बिना अंगरेजी बुलवाए ही बचाए रखा था  यह तो बच्चा - बच्चा जानता है । रेपिडेक्स न होता तो आज अंगरेजी जिंदा न होता । हिंदी में अंगरेजी सीखने का शानदार अनुभव लेने का सौभाग्य अब नई पीढ़ी को कहां ? हमने अंगरेजी को हिंदी में सीख लेने का अजूबा काम कर दिखाया था । हम बिहारियों ने बिहारी- हिंदी में अंग्रेजी लिख - बोलकर अंगरेजी की एक नई शैली को खड़ा कर दिया था । आज भी हम अंगरेजी बिहारी में ही बोलने का बखूबी हुनर रखते हैं । बिहारी अंगरेजी ने एक नए फनेटिक को जन्म देकर अंगरेजी से पूरा बदला चुका लिया है और अंगरेजी अब बस खामोशी से सबकुछ सह लेने को मजबूर है ।*

*उन दिनों हम कर्सिव राइटिंग का नाम तक न सुने थे । बस एक चीज हम अपने आप अपनी शानदार प्रतिभा से सीख लिए थे और वह था जैसे भी हो सटा - सटा कर किसी तरह घुमा - फिराकर लप्तुआ अंगरेजी लेखन शैली जिसकी छाप आज भी कई विभागों छपती रहती है । यह हुनर उन दिनों सबको था । सबने अपने - अपने हुनर से एक नई शैली रच दी थी । और हां , तीन लाइन वाली अंग्रेजी की कॉपी हमारे लिए बेकार सी थी और हम हिंदी की दो लाइन वाली कॉपी में ही अंग्रेजी लिख - लिखकर अंगरेजी को बार - बार यह अहसास दिला देते थे कि हिंदी से बचकर कहां भागोगे । अंगरेजी का हिंदीकरण हमने कर ही डाला था । हम बिहारियों को जो सदमा अंगरेजी ने दे रखा था उसका खूब बदला हमने ले रखा है उसका रंग - रूप अपनी मर्जी से बदलकर  और बिहारी टोन से उसका विलायती फोनेटिक बदलकर ।*

*क्लास 6 से अंगरेजी पर फोकस किया जाता था और वो भी " I am , She is ......" टाइप का सिलेबस हुआ करता । 6 से पहले सब लोग वही लप्तुआ अंगरेजी लिखने का ही हुनर विकसित करते रहते और भार्गव की डिक्शनरी को चाट - चाटकर पहले कौन  पूरा पचा लेगा यही कॉम्पटीशन होता रहता। कुछ तो पूरा डिक्शनरी ही घोर के पी जाने का शानदार हुनर रखते थे । उन दिनों स्पेलिंग पूछने की घातक बीमारी चारों ओर फैली होती और यह सबको शिकार बना चित कर दिया करती थी । शायद ही इसके प्रकोप से कोई बच पाया । इसका कोई वैक्सीन नहीं बन पाया और पता नहीं यह बीमारी कैसे बिना वैक्सीन के चली गई । अब स्पेलिंग कोई नहीं पूछता । स्पेलिंग तो छोड़िए अब तो कोई टाइम भी नहीं पूछता । अब दौर किताब - कलम  और घड़ी की नहीं बस एंड्रॉयड फोन की है जहां सब मिलता है बस कोई पूछने वाला नहीं मिलता । अब आदमी काम टॉकिंग टॉम ज्यादा बोलता है ।*

*अब अंगरेजी मीडियम का नया दौर है जहां बच्चा जन्म लेते ही एप्पल खाता है और खेलने के लिए प्ले स्कूल जाता है । हम जैसे सरकारी स्कूल के पैरेंट्स अब नए सिरे से अपने बच्चों के साथ - साथ अंगरेजी स्कूल का अंगरेजी चैप्टर पढ़कर अपनी पुरानी भूल सुधारने में लगे हैं । अब स्पेलिंग नहीं फोनेटिक बताया जाता है । पैरेंट्स मीटिंग में गार्जियन लोग का रैगिंग होता है और बच्चा घर आकर हमको ही पढ़ा देने का जिगर रखता है । अब नया दौर है जिसमें खड़े - खड़े दौड़ लगानी होती है और पहुंचते कहीं नहीं मगर पसीने छूट पड़ते हैं ।*

*तख्ती और स्लेट पर चौक - पेंसिल से लिखना अब बेतुकी का सबब बन चुका है। अब सीधे कॉपियों पर पेंसिल से लिखे जाने का नया दौर है । तख्तियों पर चौक और पेंसिल से अक्षरों की प्रैक्टिस कर सुलेख लिखने पर अब यह कहकर पाबंदी है कि लेख बिगड़ जाएगा । लिखना लिखने की परंपरा अब खत्म हो चुकी है । सुंदर लिखावट की जगह अब कई किस्मों के फ़ॉन्ट ने ले लिया है ।अब तो जिंदगी का फ़ॉन्ट भी स्मार्टफोन और लैपटॉप्स तय कर रहा है । पुरानी दुनिया अब आउटडेटेड होकर नए वर्जन में एक छोटी सी डब्बी ने सिमटकर रह गई है । दुनिया अब वर्चुअल हो रही है जहां सबकुछ हवा में तैर रहा । हम जमीं छोड़ चुके हैं और बस उड़े ही जा रहे ।*

_________________________

*© राजू दत्ता✍🏻*

No comments:

Post a Comment