अपने ही तानों बानों में हम उलझ बैठे
बना पेंच जीवन को हम खुद उलझ बैठे
जानकर सत्य सभी फिर भी सब लुटा बैठे
गिनती की सांसों को यूं ही गवां बैठे
अपने ही तानों बानों में हम उलझ बैठे ।
छोड़ रौशनी सूरज की अंधेरे में सिमट बैठे
बहती हवाओं को यूं ही शोर समझ बैठे
दौड़ दिवा - सपनों की सत्य समझ बैठे
छलावे को ही सत्य समझ बैठे
अपने ही तानों बानों में हम उलझ बैठे ।
टिप - टिप गिरती बूंदों को व्यर्थ शोर समझ बैठे
सिक्कों की खन - खन को संगीत समझ बैठे
सीधे - सादे जीवन को बेकार समझ बैठे
अपने ही तानों बानों में हम उलझ बैठे ।
समय शेष है , बाकी है सांसे
खुले आसमां के नीचे
बिना मूल्य के, बिना उलझन के
सत्य सदा ही भरा रहा , संगीत सदा ही गूंज रहा
कर लो निर्मुल्य आलिंगन इसका
कुछ ही जीवन शेष रहा ।
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