Sunday 10 February 2019

वसंत पंचमी

बसंत पंचमी का नाम सुनते ही वो दिन बरबस ही आँखों के सामने तैरने लगते हैं . टीन के डब्बे में बंद चंद सिक्के की खन - खन की आवाज़ बजाते चंदा काटने का वो सुकून भरा पल आँखों को नम कर देता है . दिन भर का वो दौर और शाम को पैसे गिनने का कौतूहल वो पल कोई कैसे भूल सकता है ?  चंदे में दूधवाले से दूध फल वाले से फल जो भी मिल जाता था वसूले जाते थे . वो तड़के की सुबह सवेरे शहीद चौक पर गाय -भैंस वालों को रोककर चंदे की बकझक और फ़िर चंदा वसूल लेने के विजयभाव का वो गर्व अब भी गर्वित करता है . बांस लगाकर , रास्तों को रोककर सायकल वाले , रिक्शे वाले , स्कूटर वाले से चंदा काटना अपने आप में एक त्यौहार सा था . अबकी बार कौन सा क्लब कौन सा पंडाल सजायेगा ,  मूर्ति कहाँ से आएगी इसका पता लगाना एक अद्भुत अनुभव सा था . रायगंज से मूर्ति लाने का गौरव किसी -किसी को था . दिनभर मिशन रोड , अनाथालय रोड और न्यूं मार्केट का चक्कर लगाना और बनती मूर्ति को अनंत बार बैठकर देखते रहना और मुर्तीवाले से डांट फ़टकार खाकर भागना और छुपकर फ़िर देखना वो कौतूहल कौन भूल सका है ? माँ की सारियॉँ से पंडाल बनाना और सारी फटने पर डांट और पिटायी का वो मंज़र अभी तक ताज़ा है .ख़ुद से पंडाल सजने की वो अनमोल काला अब खोती सी जा रही है .पूजा की रात रातभर जगना और चाय -पावरोटी का मज़ा लेने का वो सौभाग्य हमें मिला हुआ था . मूर्ति विसर्जन के बाद खिचड़ी बांटने और खाने का वो स्वर्गिक आनंद अद्भुत था . क्लब के मेंबर होने का सुख ये था कि प्रसाद और खिचड़ी ज़्यादा मिलता था जो कि किसी उच्च ओहदे से कम न था . वो नाच -गाना , वो संगीत , वो आनंदित पल भुलाए नहीं भूले . वो चट्टान क्लब अब नहीं रहा मगर जेहन में वो मधुर यादें चट्टान सी खड़ी हैं .(RD)✍🏻✍🏻✍🏻