Sunday 17 July 2022

मुड़े हुए नोट

*मुड़े हुए नोट*

यह छोटी सी तस्वीर सब कुछ बयां कर देती है । कुछ भी कहने की जरूरत नहीं रह जाती ....🙇🏻‍♂️ जीवन - सुख के  सम्पूर्ण सार को अपने में समेटे यह तस्वीर लाज़वाब है ...😍  आज हमारी जिंदगी  पैकेज में बंधी - बंधी सिमटी - सिमटी सी है । जीवन - सुख की परिभाषा बदल सी गई है ।  खैर  ! जिंदगी यूं ही बदलती रहती है और उनके मायने भी साथ - साथ बदलते जाते हैं 🙆🏻‍♂️ सफ़लता की बुलंदियों से नीचे झांकती जिंदगी बस एक धुंधली सी तस्वीर का अहसास ही करती है .... जिंदगी दूर तलक खोई - खोई सी बड़ी सी पैकेज में ऊंची बिल्डिंगों में समाई उन पुराने जज़्बातों से तन्हाई में गुफ्तगू करती है और हम उन अनमोल लम्हों के दीदार अपने अंतर्मन में कर जिंदगी को धुआं - धुआं होते दीदार करते हैं ....🧐

 खैर ....! आगे बढ़ते हैं ....🚶🏻‍♂️ इस तस्वीर की उस बेशकीमती स्पर्श को हम महसूस करने से भला खुद को कैसे रोकें ...!🫳🏻 यह तस्वीर हमारी उस जिंदा जिंदगी की एक धरोहर है जहां हमने अपने बेशकीमती लम्हें दर्ज किए हैं ....🕕

उन जर्जर हो चुके हाथों से हमारे बचपन ने जो बेशकीमती खजाने पाए हैं वो बेहिसाब हैं । त्यौहारों का जश्न हो या फिर मेहमानों की विदाई, उन बुजुर्ग हाथों ने चुपके से अपनी आंचल के कोर से बंधी जो विरासत हमें सौंपी है वह पूरी धरती के तमाम जवाहरातों से भी कीमती थे! वो चवन्नी, वो अठन्नी, वो करीने से मुड़े हुए नए नोट .....!🌝 दशहरा, दिवाली , होली  या फिर ईद और बकरीद या फिर बैसाखी.....हमारी जिंदगी इसी मुड़े नोट से सीधी और बेहिसाब खुशी भरी हुआ करती! नानी , दादी, काकी, नाना, दादा और काका सब के सब हमारे जिंदा बैंक हुआ करते और हम उन बैंकों के इकलौते मालिक! क्या सल्तनत थी हमारी .....ननिहाल से लेकर ददिहाल तक फैली सल्तनत और हम रहते भी तो थे फैले - फैले से .....!💂‍♀️💂‍♀️💂‍♀️ 

खनाजों का हिसाब हम रात और दिन लगाया करते! बार - बार सिक्कों की गिनती और गिनती के वक्त चवन्नियों की खनखनाहट के अलौकिक संगीत से हम सरोबार रहते । उन जमा खजानों से हम सब कुछ खरीद लेने का जज़्बा रखते .....🥰

कभी बाईस्कोप वाले के पीछे दौड़ते - भागते १० पैसे में दिल्ली का कुतुबमीनार देख आते तो कभी लाल - पीली आइसक्रीम खाकर अपने जीभ रंगते हुए सबको दिखाते फिरते । काग़ज़ की घिरनी , फन फैलाए सांप, आर्मी वाली जीप और टैंक, राजा की कोठी और रानी की सेज सब के सब हमारी हैसियत के भीतर ही तो थे ....🫶🏻

आसमां से जमीं और फिर जमीं से आसमां सबकुछ ख़रीद चुके थे । हमारे पास उन झुरझुरे हाथों की ताक़त हुआ करती और हम उसी ताकत के बलबूते राजा हुआ करते....🕵🏻‍♂️ 

अब क्या कहें? कोई बराबरी नहीं । जीवन भर की कमाई एक तरफ़ और वो चुपके से थमाए गए मुड़े हुए नोट एक तरफ़ .....! असली सल्तनत वही तो थी जिसके सुलतान हम ही तो थे ....! कसम से इतने सुंदर हाथ जिनसे हमारे बचपन को करीने से संवारा और सहेजा , हमने अभी तक नहीं देखे ....और शायद कहीं दूर तलक नहीं दीदार होने वाले ...! वो मुड़े हुए नोट अब ख़त्म हो चुके हैं और हमारा बेहिसाब खज़ाना अब ख़ाली हो चुका है और लाखों की पैकेज लेकर हम तन्हां - तन्हां जिंदगी का साथ निभाते चले जा रहे हैं ...!🤝


(राजू दत्ता✍🏻)

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