अपराजित हार
ये
कैसी जीत है
कि हम जहाँ
खड़े हैं, वहाँ
तलाश है उनकी
जो पीछे छूट
गये ? हर जीत
में इंसान अकेला
खड़ा होता है.
रेस मे जीतने
वाला विजेता तो
कहलाता है, मगर
हार मे मिलती
हैं उनकी यादें
जो दौड़ में
पीछे छूट गये.
जिंदगी की दौड़
भी कुछऐसी ही
है. सपनों की
उड़ान में आशियाने
छूट जाया करते
हैं. किसी चीज़
को पाने की
कीमत किसी चीज़
को खोकर मिलती
है. शायद इसलिए
सबकुछ पाकर भी
अधूरेपन का अहसास
होता है. जवानी
बचपन को खो
देती है. समझदारी
आने पर यौवन
चला जाता है.
जीवन के अंतिम
पड़ाव में हमें
यथार्थ से साक्षात्कार
होता है. यह
सुनिश्चित हो जाता
है कि
हमारी दिशाहीन दौड़
निरर्थक थी. एक
जीत ऐसी भी
है, जहाँ विजेता
केवल जीतता है.
एक जीत ऐसी
भी है, जहाँ
हार में भी
जीत का जश्न
होता है. हारकर
जीतने का वह
सुखद अनुभव उस
जीत से भी
बड़ा होता है.
सबको साथ लेकर
चलने में चाल
भले ही मन्थर
हो जाती है
और प्रथम दृष्तिया
दुनिया की दौड़
में खुद को
पीछे पाते हैं,
परंतु साथ चलने
का जो विजय-भाव होता
है, वह जीतने
की महत्वाकांक्षा को
पराजित कर देता
है. यह अंतरात्मा
की जीत है.
-राजू
दत्ता
समस्त दौड़ जीवन स्तर को एक समुचित आयाम देने की चाह से शुरू होती है और ये दौड़ अहंकार के वशिभूत होकर अनियंत्रित होती चली जाती है। जिस से सांसारिक सुख सुविधा पैसो का पहाड़ तो खड़ा हो जाता है मगर आत्मिक सुख धूमिल हो जाता है। और जब मृत्यु का क्षण निकट आता है तो सब एक भ्रम लगता है। केवल वही क्षण वास्तविक प्रतीत होते है जो आपने अपनो के लिए जिये होते है। असल मे आपका वास्तविक जीवन वही था जिसको आप बोहुत कम जिये।
ReplyDeleteइसलिए मनुष्य की खोज छुद्र की न होकर अनंत की होनी चाहिए।
धन्यवाद