Friday, 17 July 2020

जिद्द

हादसों की दास्तां हूं मैं
हर अंजाम सह लेंगे 
उठना पड़ेगा ख़ुदा को भी
कुछ ऐसा कर जाएंगे ।

तकलीफों के समंदर को पार किया
बार - बार किया 
मरा बार - बार, फिर भी जीया 
हादसों की दास्तां हूं मैं
हर अंजाम सह लेंगे ।

धूप और भूख को जीता बार - बार
हर तूफ़ान को किया तार - तार
झुका , गिरा फिर उठा मैं बार - बार
हादसों की दास्तां हूं मैं
हर अंजाम सह लेंगे ।

कैसा दुःख और फिर संताप कैसा 
जिंदा हूं जबतक फिर ताप कैसा 
हर ताप सहा , बार - बार सहा 
खड़ा हूं मैं अब भी फिर संताप कैसा 
हादसों की दास्तां हूं मैं
हर अंजाम सह लेंगे ।

तपता हूं बार - बार 
फिर भी हंसता हूं बार - बार
कैसा दुःख और फिर संताप कैसा 
मिली है छाव भी तो 
फिर ताप से संताप कैसा
हादसों की दास्तां हूं मैं
हर अंजाम सह लेंगे ।

समय पर समय का ही जोर नहीं
बिना शांति के हो सकता शोर नहीं
बात बस सोच की है कोई कमजोर नहीं 
गिरा दे हौसले को आंधियों में वो जोर नहीं 
हादसों की दास्तां हूं मैं
हर अंजाम सह लेंगे ।

बिना लड़े ही जीता जंग बस खड़े- खड़े 
विपदाएं अाई रहे हम अड़े - अड़े
सीखा था सबकुछ यूं ही जड़े - जड़े 
रोया, फिर हंसा, फिर भी ना रुका 
मैं न थका , बस वो ही थका 
हादसों की दास्तां हूं मैं
हर अंजाम सह लेंगे ।

मैं मुस्कुराया सदा
रोया फिर हसा सदा
तूफानों से सीखा सदा
कैसे रहना है खड़ा सदा 
हादसों की दास्तां हूं मैं
हर अंजाम सह लेंगे ।

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