Thursday 8 December 2022

बेरोजगारी का समाजवाद

*#बेरोजगारी का समाजवाद और गरम समोसा...!#*

सच है न ! बेरोजगारी की रईसी रोज़गार की शोहरत से ज्यादा मज़े दिया करती थी । वो भी क्या दिन हुआ करते थे जब पॉकेट खाली और दिल खुशियों से लबालब भरे हुआ करते थे । वो चाय की दुकान और वहां होनेवाली किच - किच के मजे कि पैसे कौन देगा? चाय के तू देगा और बिस्कुट के वो ! कल मैंने पिलाया था , आज तू देगा ! नाश्ते की दुकान हो या फिर समोसे की दुकान और या फिर मूंगफली वाले का ठेला हो , पैसे का किच - किच ही असली स्वाद दिया करता ! नया सिनेमा और पहले शो का पहला टिकट बुक होने से पहले का जुगाड़ और गहन माथापच्ची का क्लाइमैक्स आज की वेबसरीज के क्लाइमैक्स से भी ज्यादा क्लाइमैक्स दिया करता ! और यही उम्दा क्लाइमैक्स बेरोजगारी की दर्द को दबाए रखा करता ! बिना बुक्स मेंटेन किए पूरा और सही हिसाब - किताब हुआ करता और बैलेंस शीट पूरी तरह बैलेंस हुआ करता ! जो कुछ भी चिल्लर अपनी जेब में हुआ करता उसका १०० प्रतिशत अपने पर खर्च हुआ करता और उन दोस्तों की उधारी पर जिससे ऐश किए जाते ! ज्यादा अमीर दोस्त गरीब दोस्तों के खर्चे उठाया करता और कम अमीर अपना जुगाड़ खुद कर लेता । देश में समाजवाद भले ही फेल हुआ हो मगर बेरोजगारी का समाजवाद हमेशा सफ़ल रहा है । बेरोजगारी में कोई अमीर और कोई गरीब नहीं होता । सब एकसमन बेरोजगार होते हैं और इसका मज़ा सब बराबर - बराबर लेते हैं ! इसी मजे के नशे में मार्क्सवाद भी पनपा होगा !

 खैर..! फिर रोज़गार की घातक बीमारी फैली और वो शानदार नशा टूटा और फिर आदमी भी टूटा! अब पैसे जेब में आने लगे और वो दोस्तों की किच - किच ख़त्म होने लगी ! सारे रोजगारी हो गए ! बेरोजगारी का समाजवाद ध्वस्त हो गया । अब वो १०० प्रतिशत जो बेरोजगारी में अपने पर खर्च हुआ करता बाकि जिम्मेदारियों पर लुटा जाता है और बेरोजगारी का चिल्लर भी अब हाथ से गया ! आदमी पहले से ज्यादा कंगाल हो गया । अब बैलेंस शीट गड़बड़ा गया और लायब्लिटीज ज्यादा हो गया । हर कोई अपना बैलेंस शीट ठीक करने की जुगाड़ में व्यस्त होकर दोस्तों से किच - किच और हुल्लरबाजी भूलता गया और वो असली स्वाद जाता रहा ...! अब आदमी सिनेमा का उतना मजा नहीं ले पाता और खुद सिनेमा हो चुका है ।

जिंदगी का असली स्वाद दोस्तों की किच - किच और थोड़े अभाव में ही होता है । अपना समोसा जल्दी - जल्दी खाकर दोस्तों के समोसे को झट से उठाकर खा जाने का आनंद उस अपने हिस्से के समोसे के स्वाद से ज्यादा आनंदपूर्ण होता है । चाय के पैसे की किच - किच और आज तू पिलाएगा वाली फीलिंग ही गुड फीलिंग है और बाकी तो बस गहरी फीलिंग ही है ! किच - किच का जो संगीत है वही असली सुर है बाकि तो बस दिल को बहलाने का कोई भी ख्याल अच्छा है । पूरा रोजगार जिंदगी के संगीत को बेसुरा कर दिया करता है । थोड़ी बेरोजगारी जरूरी है जिंदगी में ताकि आप फुरसत में अपनों के साथ किच - किच कर जिंदगी में क्लाइमैक्स बनाए रख सकें और जिंदगी के नूरानी मज़े ले सकें ! 

*(राजू दत्ता✍🏻)*

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