दो चार बार दर्जी मास्टर के यहां जाकर पता करने की कोशिश करने की कवायद कि वो पुरानी अब न इस्तेमाल होने वाली परिवार के बड़े सदस्यों की फूल पैंट से दो नई हाफ पैंट (निक्कर) सिलकर तैयार हुई या नहीं तो निराशा ही हाथ लगती थी । उस समय ये इल्म न था कि दर्जी मास्टर के लिए यह कोई प्राथमिकता का काम न था । नए कामों पर ज्यादा दाम मिलने का उत्साह हमारे बाल मन के कौतूहल से ज्यादा था और तो और हमारे काम के लिए दाम भी एकमुश्त मिलने के कम आसार और किस्तों में मिलने के आसार उनके काम को सुस्तता से भरने के लिए काफ़ी होते थे । कई बार दर्जी की फटकार सुनने के बाद बस एक ही उपाय शेष बचता था कि बस किसी भी बहाने से दर्जी की दुकान के सामने से बार बार गुजरा जाए और अपनी तिरछी नज़रों से पुरानी पैंट से बने नए निक्कर को तलाशा जाए । दर्जी के लिए यह काम भले ही दोयम दर्जे का था मगर हमारे लिए बिल्कुल नए से नए अनुभव का पल होता था । बेतरतीब तरीके से चिप्पियों वाले हाफ पैंट के सामने पुराने फूल पैंट से बना नया हाफ पैंट हमारे लिए एक नूतन गौरव का कारण था । एक पुराने फूल पैंट से दो हाफ पैंट को तैयार करवाने की जद्दोजहद और किसी तरह टेलर मास्टर का तैयार होना एक बहुत बड़ी बात होती थी । आखिर ढली उम्र वाली जर्जर फूल पैंट से दो हाफ पैंट को तैयार करना काफी बारीकियों भरा काम भी तो होता था और ऊपर से सिलाई के उतने दाम भी न मिलने और मिलने भी तो किस्तों में । आखिर किसी तरह वो दिन आ ही जाता जब दो हाफ पैंट घर आ जाता जिनमें काफ़ी अंतर भी हुआ करता था ।साइज के अंतर पर तो ध्यान भी न दिया जाता । किसी एक में जिप होती तो किसी एक में बटन । किसी में दो पॉकेट होते तो किसी में एक भी नहीं । ऐसे भी उन दिनों पॉकेट का इस्तेमाल बस जाड़े में हाथ डालकर रखने में होता था न कि सिक्कों को सहेजने में । हमारे लिए वो दिन उत्सव का ही होता था । पुरानी फूल पैंट से नए हाफ पैंट के उत्सव का दिन ।
(राजू दत्ता)✍🏻
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