Sunday, 26 August 2018

नया दौर

स्कूलों का वो शोर अब कुछ शांत सा है
तन्हाई में भी अब चित्त अब अशांत सा है ।

सुबह की वो लालिमा  अब धूमिल सी है
कलरवों का वो शोर अब मध्यम सा है ।

साँझ की वो बेला अब ख़त्म सी है
वो घंटियों की आवाज़ निकलती गयों के गले से अब ख़त्म सी है ।

जुगनुओ की वो अँधेरी रातों में टिमटिमाना अब अँधेर सी है
वो घुटनों की छीलन अब गायब सी है ।

वो लाल जलेबी अब रंग खोती सी है
वो पीली चाट और गुलाबी टिक्की रोती सी है ।

कंचों की वो खनखनाहट अब खोयी सी है
लट्टुओं की वो घनघनाहट अब शांत सी है ।

कित  -कित  की वो कित -कित था अब मौन सी है
बारिश में मिट्टी की सोंधी सी महक अब खोती सी है ।

कच्चे अमरूद का वो स्वाद अब फ़ीका सा है
गुड्डे गुड्डियो का वो खेल अब पुराना सा है ।

बारिश में नाव चलाने का दौड़ अब ख़त्म  सा है
कभी ना थकने का वो दौड़ अब मध्यम सा है ।

माँ के आँचल की कोर में बँधे खजाने अब लूटे से हैं
वो रँगीन होली अब बेरंग सी है वो रोशन सी दिवाली अब बेनूर सी है ।

हसरतें अब नये दौर में बदली सी है
बड़ी चाहतों में छोटी ख्वाहिशें अब गायब सी हैं ।

अब समय बदला बदला सा है रुत बदली बदली सी है
मीजाजे शहर भी अब बदला बदला सा है ।
✍(RD)

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